रिश्तों को इस तरह कोई बिगाड़ता नही है
अपना ही आशियाना कोई उजाड़ता नही है
अपना ही आशियाना कोई उजाड़ता नही है
आइना घर का उदास रहा करता है अब
तेरे बाद उसकी ओर कोई निहारता नही है
तेरे बाद उसकी ओर कोई निहारता नही है
आँगन की तुलसी भी दूब से घिर गई है
उन गमलों से घास कोई उखाड़ता नही है
चौखट से वापस मैं लौटता नही हूँ
कोई पीछे से अब मुझे पुकारता नही है
उन गमलों से घास कोई उखाड़ता नही है
चौखट से वापस मैं लौटता नही हूँ
कोई पीछे से अब मुझे पुकारता नही है
तेरे बिन ये घर अब घर नही लगता
बिखरा है हर कोना कोई संवारता नही है
बिखरा है हर कोना कोई संवारता नही है
'मौन' रहकर जाने क्या सोचा करता हूँ
तेरे ख़्यालों से बाहर कोई निकालता नही है
तेरे ख़्यालों से बाहर कोई निकालता नही है
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, आप,आप, आप और आप - ब्लॉग बुलेटिन “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteसादर आभार आपका🙏😊
Deleteवाह!!!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर...लाजवाब...
धन्यवाद आपका🙏😊
Deleteबहुत खूब
ReplyDeleteशुक्रिया आपका
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ReplyDeleteआपकी लिखी रचना आज "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 27जून 2018 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
हार्दिक आभार आपका🙏
Deleteबहुत सुंदर मन को छूती गजल।
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया आपका🙏
Deleteबहुत खूब ...
ReplyDeleteनायाब शेरों से सजी लाजवाब गजल ...
बहुत बहुत शुक्रिया आपका🙏
Deleteबेहतरीन गजल
ReplyDeleteशुक्रिया आपका😊
Deleteबेहतरीन..
ReplyDeleteDhanyawaad apka
Deleteबहुत ही शानदार और मार्मिक गजल
ReplyDeleteधन्यवाद आपका
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