Friday, 22 June 2018

बिखरा आशियाना...

रिश्तों को  इस तरह  कोई बिगाड़ता नही है
अपना ही आशियाना कोई उजाड़ता नही है
आइना  घर का  उदास रहा करता है  अब
तेरे बाद उसकी ओर कोई निहारता नही है
आँगन की तुलसी भी दूब से  घिर  गई  है
उन गमलों से घास कोई उखाड़ता नही है

चौखट  से  वापस  मैं  लौटता  नही  हूँ
कोई पीछे से अब मुझे पुकारता नही है
तेरे  बिन  ये  घर  अब  घर  नही  लगता
बिखरा है हर कोना कोई संवारता नही है
'मौन'  रहकर  जाने  क्या  सोचा  करता  हूँ
तेरे ख़्यालों से बाहर कोई निकालता नही है

18 comments:

  1. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, आप,आप, आप और आप - ब्लॉग बुलेटिन “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  2. वाह!!!
    बहुत सुन्दर...लाजवाब...

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  3. आपकी लिखी रचना आज "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 27जून 2018 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. हार्दिक आभार आपका🙏

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  4. बहुत सुंदर मन को छूती गजल।

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    1. बहुत बहुत शुक्रिया आपका🙏

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  5. बहुत खूब ...
    नायाब शेरों से सजी लाजवाब गजल ...

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    1. बहुत बहुत शुक्रिया आपका🙏

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  6. बेहतरीन गजल

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  7. बहुत ही शानदार और मार्मिक गजल

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