Sunday, 9 July 2023

आख़िरी बार

हम मिले और मुस्कुराए
ये जानते हुए भी ये आख़िरी बार है
सूखे होंठों पर मुस्कान उकेरते हुए
कितनी सहजता से गले लगकर
ख़ुश रहने की दुआएं निकाली गयी

हमने ये तय कर लिया था कि
कंधों को आँसुओं का बोझ नही देंगे
क्योंकि छाती का भार काँधे पर रखकर 
जीवन की गाड़ी नही चलाई जाती

कितना आसान हो जाता है 
अपनी आत्मा को मारना
जब समय साथ ना हो
और कितना मुश्किल होता है
गालों को सुखा रखना
जब खामोशियाँ फूटने को हों

कुछ अंत सुखद नही होते
पर उन्हें दुःख का नाम नही दिया जाता
कुछ बातें अक्सर अधूरी रहती हैं
और उन बातों को भुलाया नही जाता ।

अमित 'मौन'

PC : Google

10 comments:

  1. खूबसरत पंक्तियाँ।

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  2. बेहद हृदयस्पर्शी अभिव्यक्ति।
    सादर
    ---
    जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार १४ जुलाई २०२३ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

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    Replies
    1. हार्दिक धन्यवाद आपका

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  3. हमने ये तय कर लिया था कि
    कंधों को आँसुओं का बोझ नही देंगे
    क्योंकि छाती का भार काँधे पर रखकर
    जीवन की गाड़ी नही चलाई जाती
    ये समझ सिर्फ समझ में रहती हैं हकीकत में तो छाती का भार पूरा शरीर ढ़ो रहा होता है और जीवन की गाड़ी किसी तरह खींची जा रही होती है ।
    बहुत ही लाजवाब सृजन ।

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  4. 'मौन' अच्छा लगा ये देख कर कि ब्लॉग में अभी भी जान बाकी है.
    ऐसे दुःख जो कभी भी बयाँ नहीं होते दिल के हथियार होते हैं
    सृजन अच्छा है मित्र.

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  5. सुन्दर कविता

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