हम मिले और मुस्कुराए
ये जानते हुए भी ये आख़िरी बार है
सूखे होंठों पर मुस्कान उकेरते हुए
कितनी सहजता से गले लगकर
ख़ुश रहने की दुआएं निकाली गयी
हमने ये तय कर लिया था कि
कंधों को आँसुओं का बोझ नही देंगे
क्योंकि छाती का भार काँधे पर रखकर
जीवन की गाड़ी नही चलाई जाती
कितना आसान हो जाता है
अपनी आत्मा को मारना
जब समय साथ ना हो
और कितना मुश्किल होता है
गालों को सुखा रखना
जब खामोशियाँ फूटने को हों
कुछ अंत सुखद नही होते
पर उन्हें दुःख का नाम नही दिया जाता
कुछ बातें अक्सर अधूरी रहती हैं
और उन बातों को भुलाया नही जाता ।
अमित 'मौन'
PC : Google
खूबसरत पंक्तियाँ।
ReplyDeleteधन्यवाद आपका
Deleteबेहद हृदयस्पर्शी अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteसादर
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जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना शुक्रवार १४ जुलाई २०२३ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
हार्दिक धन्यवाद आपका
Deleteहमने ये तय कर लिया था कि
ReplyDeleteकंधों को आँसुओं का बोझ नही देंगे
क्योंकि छाती का भार काँधे पर रखकर
जीवन की गाड़ी नही चलाई जाती
ये समझ सिर्फ समझ में रहती हैं हकीकत में तो छाती का भार पूरा शरीर ढ़ो रहा होता है और जीवन की गाड़ी किसी तरह खींची जा रही होती है ।
बहुत ही लाजवाब सृजन ।
धन्यवाद आपका
Delete'मौन' अच्छा लगा ये देख कर कि ब्लॉग में अभी भी जान बाकी है.
ReplyDeleteऐसे दुःख जो कभी भी बयाँ नहीं होते दिल के हथियार होते हैं
सृजन अच्छा है मित्र.
धन्यवाद आपका
Deleteसुन्दर कविता
ReplyDeleteधन्यवाद आपका
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