उस मासूम के होंठ काँप रहे थे
पर गुब्बारे फुलाने को वो बेकरार था
शायद वो खुद भी ये भूल गया था
आज सुबह से उसको तेज़ बुखार था
मैं तो मस्ती में यूँ ही घूम रहा था
आज छुट्टी है अपनी दिन इतवार था
उसे फ़िक्र थी शाम की रोटी की शायद
इस लिये उसपे कमाने का भूत सवार था
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