मोहब्बत का शुरू सफर ना हुआ
वो कभी मेरा हमसफ़र ना हुआ
वो कभी मेरा हमसफ़र ना हुआ
क्यों करें शिक़वे उसकी बेवफाई के
जब दिल में उसके मेरा बसर ना हुआ
जब दिल में उसके मेरा बसर ना हुआ
कुछ यूँ रहा अपना अंजाम-ए-मोहब्बत
जो पहले कभी किसी का हसर ना हुआ
जो पहले कभी किसी का हसर ना हुआ
हर दफ़ा हाज़िर रहे उनके इशारे पे
पर वो कभी हमे मयस्सर ना हुआ
पर वो कभी हमे मयस्सर ना हुआ
बस ग़ुम रहा इन अंधेरों में इश्क मेरा
एक शब ऐसी जिसका सहर ना हुआ
एक शब ऐसी जिसका सहर ना हुआ
शायद इसलिये हो गया हूँ 'मौन' अब
मगरूर पे जज्बातों का असर ना हुआ
मगरूर पे जज्बातों का असर ना हुआ
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