सहसा ही सुन के नाम मेरा
यानी कि विह्वल तुम भी हो
छीना है जो आराम मेरा
जब साँझ ढले जब चाँद चले
उस पल में प्रियतम आ जाना
मैं गति हृदय की रोकूँगा
अधरों से पान करा जाना
जब पंछी क्रीड़ा करते हों
और पवन में ख़ुशबू फैली हो
जब दिन करवट ले सो जाए
फ़िर काली रात अकेली हो
जब शोर नही सन्नाटा हो
फ़िर जुगनू दिए जलाएंगे
जब पुष्प बिछे हों राहों में
यानी कि प्रियतम आएंगे
जब हार भुजा का डल जाए
प्रियतम थोड़ा सकुचा जाना
जिस प्रहर प्रेम की बातें हों
तुम विदा को ना अकुला जाना
जब घड़ी मिलन की आ जाए
तुम पूर्ण समर्पण कर देना
संवाद नयन से होगा जब
तुम प्रेम हृदय में भर लेना
अमित 'मौन'
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हार्दिक आभार आपका
ReplyDeleteबहुत खूब
ReplyDeleteधन्यवाद आपका
Deleteवाह शृंगार रस का उत्कृष्ट सृजन।
ReplyDeleteबहुत सरस सुंदर भाव भरी रचना।
बहुत बहुत धन्यवाद आपका
Deleteबहुत सुंदर मनोभाव। बधाई।
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद आपका
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