जीवनचक्र की अनवरत यात्रा में पथिक को कभी आगे आने वाली कठिनाइयों से अवगत नही कराया गया। मार्ग में आने वाले अवरोधकों को हटाकर उन्होनें दूसरों के लिए रास्ते भी बनाए पर उसका श्रेय कभी उनको दिया नही गया।
सजीव से लेकर निर्जीव तक सभी अपने लिए तय किये हुए रास्तों से गुजरे। कुछ स्वयं रास्ता बन गए और कुछ किसी और को मंज़िल की तरफ़ बढ़ाने का जरिया बने।
तय दूरी तक की यात्रा के पश्चात किसी के हिस्से गुमनामी आयी और कुछ बदक़िस्मती से सिर्फ़ एक माध्यम बन कर रह गए।
स्वादिष्ट फल उनके पूर्वज बीजों द्वारा तय की गयी वो यात्रा है जिसके दौरान वो बीज से पेड़ बने। प्रशंसा कभी भी बीज के हिस्से नही आई।
ताज़महल के गुणगान में सिर्फ़ शाहजहाँ और मुमताज़ को याद किया गया। शिल्पकारों और मजदूरों के योगदान को भुला दिया गया।
वीर गाथा में बखान किए गए योद्धाओं को कभी पता ही नही चला कि उनकी जीवनी से प्रभावित होकर कितने जुझारुओं ने जन्म लिया।
कविता में लिखा जाना किसी की ख़ुशक़िस्मती का सबसे बड़ा प्रमाण हो सकता है पर कविताओं की बदक़िस्मती अक़्सर यही रही कि वो अपने प्रेरणास्रोत तक पहुँचने में नाकाम रही।
अमित 'मौन'
सादर नमस्कार ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (21 -4 -2020 ) को " भारत की पहचान " (चर्चा अंक-3678) पर भी होगी,
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
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कामिनी सिन्हा
हार्दिक आभार आपका
Deleteशासक का ही गुणगान होता है, प्रजा तो सिर्फ मौन रहती है। बढिया पोस्ट। मेरे ब्लॉग पर भी आइये।
ReplyDeleteiwillrocknow.com
धन्यवाद आपका
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