Thursday, 30 July 2020

प्रेमिका

कुछ सोचते सोचते 
अचानक मुस्कुरा दोगी
तो पागल लगोगी।

नींद में सपने से डर कर
अचानक उठ जाओगी
तो बीमार दिखोगी।

काम-काज छोड़ कर
खिड़की पर टिकी रहोगी
तो कामचोर बनोगी।

कोई भी बहाना बनाकर
सहेलियों से अलग चलोगी
तो पक्का झूठी लगोगी।

किताबों में छुपाकर
किसी के संदेश रखोगी
कितनी डरपोक लगोगी

कपड़े लाने छत पर जाकर
घंटों बैठी बात करोगी
ऐसे तुम बेबाक बनोगी।

इतना सब करने के बाद भी
हर पल जब बेचैन रहोगी
तब जाकर प्रेमिका बनोगी।

अमित 'मौन'

4 comments:

अधूरी कविता

इतना कुछ कह कर भी बहुत कुछ है जो बचा रह जाता है क्या है जिसको कहकर लगे बस यही था जो कहना था झगड़े करता हूँ पर शिकायतें बची रह जाती हैं और कवि...