ये जो प्यारा मुखड़ा है
क्यों ऐसे उखड़ा उखड़ा है
प्यार, मोहब्बत और ये शिक़वे
हर प्राणी का दुखड़ा है
नही अकेला तू ही भोगी
सबको ग़म ने रगड़ा है
कौन सही है कौन ग़लत है
सदियों से ये झगड़ा है
छोड़ उदासी ख़ुशी ओढ़ ले
दुःख क्यों कस के पकड़ा है
हँसी सजा ले चेहरे पर क्यों
गुस्से में यूँ अकड़ा है
शेष अभी है पूरा जीवन
ऐसा भी क्या बिगड़ा है
अमित 'मौन'
छोड़ उदासी ख़ुशी ओढ़ ले
ReplyDeleteदुःख क्यों कस के पकड़ा है
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शेष अभी है पूरा जीवन
ऐसा भी क्या बिगड़ा है
वाह बहुत खूब!
बहुत बहुत धन्यवाद आपका
Deleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteधन्यवाद आपका
Deleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteधन्यवाद आपका
Deleteहार्दिक धन्यवाद आपका
ReplyDeleteधन्यवाद आपका
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