Monday, 24 August 2020

और फ़िर ऐसे समय में

आज खोया आसमां है

काले मेघों से घिरा है
रोक दो इन बारिशों को
डूबी जाए अब धरा है।

आँसुओं की उठती लहरें
नयन का सागर भरा है
शूल बन कर चुभती यादें
घाव अब तक वो हरा है।


और फ़िर ऐसे समय में
आ बसी हो तुम हृदय में
अस्त होती हैं उम्मीदें
कोई रुचि है ना उदय में।

घटती साँसें पूछे मुझसे
वक्त कितना है प्रलय में
शून्य जीवन करके भी तुम
क्यों रुकी हो अब हृदय में।

क्यों रुकी हो अब हृदय में...

अमित 'मौन'


P.C. : GOOGLE

Thursday, 20 August 2020

लौटना जरूरी है

जाना ज़रूरी होता है ना चाहते हुए भी

ठीक वैसे ही जैसे जीना ज़रूरी होता है
बिना किसी जरूरत के भी।

लौट आना भी उतना ही ज़रूरी है
जितना लौटने की उम्मीद लगाए रखना
तुम भी लौट आना एक दिन
उम्मीदों की उम्र लंबी रहेगी।

लौट आना तुम भी ठीक वैसे ही
जैसे बुढ़िया लौटती है अपनी खाट पर
जैसे नदी लौट आती है अपने घाट पर।

लौट आना तुम भी ठीक उसी तरह
जैसे मुंडन के बाद लौटता है बाल
जैसे सावन लौट आता है हर साल।

तुम्हे लौटना होगा ठीक वैसे ही
जैसे खिलौना मिलने पर
लौट आती है बच्चे की मुस्कान
जैसे प्रार्थना करने पर
ख़ुशियाँ लौटा देता है भगवान।

हाँ तुम्हे लौटना ही होगा
क्योंकि लौटना जरूरी है
जाने से कहीं ज्यादा जरूरी।

अमित 'मौन'


PC - GOOGLE

Monday, 10 August 2020

ऐसा भी क्या बिगड़ा है

ये जो प्यारा मुखड़ा है

क्यों ऐसे उखड़ा उखड़ा है


प्यार, मोहब्बत और ये शिक़वे
हर प्राणी का दुखड़ा है

नही अकेला तू ही भोगी
सबको ग़म ने रगड़ा है

कौन सही है कौन ग़लत है
सदियों से ये झगड़ा है

छोड़ उदासी ख़ुशी ओढ़ ले
दुःख क्यों कस के पकड़ा है

हँसी सजा ले चेहरे पर क्यों
गुस्से में यूँ अकड़ा है

शेष अभी है पूरा जीवन
ऐसा भी क्या बिगड़ा है

अमित 'मौन'

Pic Credit: GOOGLE

अधूरी कविता

इतना कुछ कह कर भी बहुत कुछ है जो बचा रह जाता है क्या है जिसको कहकर लगे बस यही था जो कहना था झगड़े करता हूँ पर शिकायतें बची रह जाती हैं और कवि...