Welcome to my Blog. I write what i saw & learn from life. Because: जो पढ़ा किताबों में, अमल में लाऊं भी तो क्या, ये जिंदगी है जनाब, फलसफ़ों से नही चलती.... Suggestions/appreciations in comment box are always welcomed. You can also read my latest writing at the following link: www.yourquote.in/amitmaun
Sunday, 27 September 2020
आखेट
Tuesday, 15 September 2020
दूरियाँ
कभी कभी लगता है कि थोड़ी दूरी भी बहुत ज्यादा दूरी होती है। फ़िर लगता है कि दूरी तो दूरी है उसमें थोड़ी और ज्यादा की कोई गुंजाइश नही होती। मन कहता है कि तुम बस जरा सी दूर हो, मैं हाथ बढ़ा कर तुम्हे छूना चाहता हूँ पर मेरे हाथ तुम तक नही पहुँच पाते। तुम बहुत दूर लगने लगती हो, लगता है जैसे मैं तुम तक कभी पहुँच ही नही पाऊंगा।
हमारे बीच एक खाई है जिसे पार नही किया जा सकता, पर मैंने फ़िर भी हार नही मानी है। मैं एक पुल बनाने की कोशिश में लगा हूँ। मैं इतने सालों से पुल बना रहा हूँ पर उस पुल का दूसरा सिरा तुम तक पहुँच नही रहा। शायद मैं अच्छा इंजीनियर नही हूँ या हो सकता है मेरे पुल तैयार करते वक़्त ये खाई और लंबी हो गयी हो।
कुछ दूरियाँ इतनी दूर होती हैं कि कभी तय नही हो पाती।
अमित 'मौन'
Saturday, 12 September 2020
इंतज़ार
कभी कभी लगता है कि अब आगे बढ़ जाना चाहिए। अब यहाँ रुकने का कोई औचित्य नही है। ऐसा कुछ नही है जिसके लिए रुका जाए। मैं गठरी बाँध कर आगे बढ़ने ही वाला होता हूँ कि एक ख़्याल आता है जो कहता है कि अगर तुम वापस आयी और मैं यहाँ ना मिला तो क्या होगा, तुम क्या सोचोगी, कहीं तुम मुझे गलत तो नही समझोगी। कहीं तुम ये ना सोचो कि मैंने इंतज़ार ही नही किया।
सिर्फ़ इतनी सी बात सोचकर मेरे कदम आगे बढ़ ही नही पाते। मेरी आत्मा मेरे शरीर से निकल कर वहीं बैठ जाती है। मेरा शरीर चाह कर भी आगे नही जा पाता। मैं जानता हूँ की इंतज़ार की एक अवधि होती है। एक तय समय के बाद किया गया इंतज़ार पहले निराशा और फ़िर अवसाद में बदल जाता है।
मैं सब समझता हूँ पर फ़िर भी सोचता हूँ कि मेरे इंतज़ार की समय सीमा कौन निर्धारित करेगा? कम से कम इतना हक़ तो मैं अपने पास रख ही सकता हूँ। यही सोचकर मैं हर बार इस अवधि को बढ़ाता चला जाता हूँ। मैं जानता हूँ कि अवधि बढ़ाने के बाद भी एक दिन ऐसा आएगा जब मुझे ही बढ़ना पड़ेगा पर मैं फ़िर से तुम्हारे बारे में सोच लेता हूँ।
मैं जीवन के उस मोड़ पर खड़ा हूँ जहाँ मेरी सोचने की शक्ति, मेरे समझने की क्षमता पर हावी हो चुकी है। मैं कितना कुछ सोच रहा हूँ पर समझने को तैयार नही हूँ।
अमित 'मौन'
अधूरी कविता
इतना कुछ कह कर भी बहुत कुछ है जो बचा रह जाता है क्या है जिसको कहकर लगे बस यही था जो कहना था झगड़े करता हूँ पर शिकायतें बची रह जाती हैं और कवि...
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घर के सब बच्चों के साथ पूरी मस्ती में जीते थे मिलता था जब दूध हमे सब नाप नाप के पीते थे स्कूल से वापस आते ही हम खेलने भाग जाते थे खाना जब...
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दायरों से निकलकर तुझे ख़ुद ही को आना होगा बदन पे जमी धूल तुझे ख़ुद ही को हटाना होगा परिंदों को सिखाता नहीं कला कोई उड़ान की पंख हौसलों ...
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जितना मुंह मोड़ोगी उतना पीछे आऊंगा तुम रुठ जाना मैं फिर मनाऊँगा जितनी शिकायत करोगी मैं उतना सताऊंगा तुम रूठ जाना मैं फिर मनाऊँगा जितनी दू...