कभी कभी लगता है कि अब आगे बढ़ जाना चाहिए। अब यहाँ रुकने का कोई औचित्य नही है। ऐसा कुछ नही है जिसके लिए रुका जाए। मैं गठरी बाँध कर आगे बढ़ने ही वाला होता हूँ कि एक ख़्याल आता है जो कहता है कि अगर तुम वापस आयी और मैं यहाँ ना मिला तो क्या होगा, तुम क्या सोचोगी, कहीं तुम मुझे गलत तो नही समझोगी। कहीं तुम ये ना सोचो कि मैंने इंतज़ार ही नही किया।
सिर्फ़ इतनी सी बात सोचकर मेरे कदम आगे बढ़ ही नही पाते। मेरी आत्मा मेरे शरीर से निकल कर वहीं बैठ जाती है। मेरा शरीर चाह कर भी आगे नही जा पाता। मैं जानता हूँ की इंतज़ार की एक अवधि होती है। एक तय समय के बाद किया गया इंतज़ार पहले निराशा और फ़िर अवसाद में बदल जाता है।
मैं सब समझता हूँ पर फ़िर भी सोचता हूँ कि मेरे इंतज़ार की समय सीमा कौन निर्धारित करेगा? कम से कम इतना हक़ तो मैं अपने पास रख ही सकता हूँ। यही सोचकर मैं हर बार इस अवधि को बढ़ाता चला जाता हूँ। मैं जानता हूँ कि अवधि बढ़ाने के बाद भी एक दिन ऐसा आएगा जब मुझे ही बढ़ना पड़ेगा पर मैं फ़िर से तुम्हारे बारे में सोच लेता हूँ।
मैं जीवन के उस मोड़ पर खड़ा हूँ जहाँ मेरी सोचने की शक्ति, मेरे समझने की क्षमता पर हावी हो चुकी है। मैं कितना कुछ सोच रहा हूँ पर समझने को तैयार नही हूँ।
अमित 'मौन'
शुभकामनाएं हिन्दी दिवस की।
ReplyDeleteसुन्दर रचना
ReplyDeleteबहुत सुन्दर।
ReplyDeleteहिन्दी दिवस की अशेष शुभकामनाएँ।
बहुत सुंदर प्रस्तुति।
ReplyDeleteहिन्दी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं।
बहुत सुन्दर।
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद आपका
Delete*एक हकीकत*
ReplyDeleteइसलिए *हिंदी* नायाब है
छू लो तो *चरण*
अड़ा दो तो *टांग*
धँस जाए तो *पैर*
फिसल जाए तो *पाँव*
आगे बढ़ाना हो तो *कदम*
राह में चिह्न छोड़े तो *पद*
प्रभु के हों तो *पाद*
बाप की हो तो *लात*
गधे की पड़े तो *दुलत्ती*
घुंघरू बाँध दो तो *पग*
खाने के लिए *टंगड़ी*
खेलने के लिए *लंगड़ी*
अंग्रेजी में सिर्फ- LEG *🌹🌹हिन्दी दिवस की बधाई🌹🌹*
इंतज़ार की एक अवधि... कभी कभी यह अवधि ही बनकर रह जाती है अमित जी,और वहां सोचना समझना बन जाता है... एक बड़ा सा शून्य
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद आपका
Deleteजी बहुत बढ़िया। इंतज़ार का क्षण बिल्कुल ऐसा ही होता है। यह लेख कई सवालों का जवाब दे रही है।
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद आपका
Deleteहार्दिक आभार आपका
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