कभी कभी लगता है कि थोड़ी दूरी भी बहुत ज्यादा दूरी होती है। फ़िर लगता है कि दूरी तो दूरी है उसमें थोड़ी और ज्यादा की कोई गुंजाइश नही होती। मन कहता है कि तुम बस जरा सी दूर हो, मैं हाथ बढ़ा कर तुम्हे छूना चाहता हूँ पर मेरे हाथ तुम तक नही पहुँच पाते। तुम बहुत दूर लगने लगती हो, लगता है जैसे मैं तुम तक कभी पहुँच ही नही पाऊंगा।
हमारे बीच एक खाई है जिसे पार नही किया जा सकता, पर मैंने फ़िर भी हार नही मानी है। मैं एक पुल बनाने की कोशिश में लगा हूँ। मैं इतने सालों से पुल बना रहा हूँ पर उस पुल का दूसरा सिरा तुम तक पहुँच नही रहा। शायद मैं अच्छा इंजीनियर नही हूँ या हो सकता है मेरे पुल तैयार करते वक़्त ये खाई और लंबी हो गयी हो।
कुछ दूरियाँ इतनी दूर होती हैं कि कभी तय नही हो पाती।
अमित 'मौन'
अच्छा है कोशिश जारी रहे।
ReplyDeleteजी धन्यवाद आपका
Deleteबहुत खूब ... पर कोशिश ज़रूर रहनी चाहिए ...
ReplyDeleteपुल एक न एक दिन बन ही जाता है ...
जी बिल्कुल.... धन्यवाद आपका
Deleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteजी धन्यवाद आपका
Deleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (18-09-2020) को "सबसे बड़े नेता हैं नरेंद्र मोदी" (चर्चा अंक-3828) पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!--
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
हार्दिक आभार आपका
Deleteबहुत अच्छा लिखा
ReplyDeleteबधाई
जी धन्यवाद आपका
Deleteबहुत ही सुंदर ।
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद आपका
Deleteबहुत सुन्दर...।
ReplyDeleteमन से मन की दूरी बहुत बड़ी दूरी है...
जी बहुत बहुत धन्यवाद आपका
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