पुरानी किताबों के पन्ने पलटते हुए एक मोरपंख हाथ लगा। उसे देखते ही मन जैसे ख़ुद बख़ुद फ्लैशबैक में चला गया। ये फ़्लैशबैक शब्द मैंने पहली बार फिल्मों में सुना था और वो फ़िल्म भी शायद इस मोरपंख को देने वाले के साथ ही देखी थी।
अचानक ये मोरपंख वाला किस्सा याद आया। किसी ने कहा था किताबों में मोरपंख रखने से पढ़ा हुआ जल्दी याद हो जाता है। पर ये कोई कोर्स की किताब तो थी नहीं, फिर भी वो चाहती थी कि ये मोरपंख मैं इस किताब में रखूं (क्योंकि ये किताब उसी ने मुझे पढ़ने के लिए दी थी) तो उसने ये बोल के रखवाया था कि इस किताब की कहानी में कुछ सीख ऐसी है जो जीवन में काम आएगी और इसी सीख को याद रखने के लिए मुझे ये मोरपंख इसमें रखना होगा।अब इसे किस्मत कहो या संयोग कि अब इस किताब की कहानी मेरी ख़ुद की कहानी हो गयी है और ये मोरपंख मुझे याद दिला रहा है कि मेरी कहानी का अंजाम याद रखने के लिए मुझे पहले ही तैयार कर दिया गया था।
मुझे समझ नही आ रहा कि कहानीकार का शुक्रिया अदा करूं, किताब देने वाले का धन्यवाद करूं या फ़िर मुझे इस कहानी का हिस्सा बनाने वाले का आभार प्रकट करूं।
वैसे मुझे लगता है कि जब आप ढेर सारी कहानियाँ पढ़ते हैं तो कभी ना कभी कोई ना कोई कहानी ऐसी जरूर होती है जिसे आप ख़ुद से जोड़ कर देखने लगते हैं या यूँ कहें वो कहानी आपको अपनी कहानी लगने लगती है।
अब जो भी हो मगर ये पुरानी किताबों को किसी और को पढ़ने के लिए देने का मेरा आईडिया फ़िर से पुराना हो गया और मैंने फ़िर से इन किताबों को वहीं रख दिया जहाँ से इन्हें निकाला था।
अमित 'मौन'
वाह
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteजी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (०४-१२-२०२०) को 'निसर्ग को उलहाना'(चर्चा अंक- ३९०६) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है
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अनीता सैनी
बहुत सुन्दर
ReplyDeleteऐसा ही होता है ।
ReplyDeleteएहसासों का हृदय स्पर्शी चित्ररत।
ReplyDeleteसुंदर भाव प्रधान रचना।