जब तक हम साथ थे तब तक तो तुमने कभी इतनी ख़ूबसूरत कविताएं नही लिखीं और जहाँ तक मैं समझती हूँ कि मुझसे पहले और मेरे बाद अभी तक कोई और ऐसा नही आया जिसे सोचकर तुम कविताएं लिखते हो (बातों ही बातों में उसने मुझसे सवाल किया)
मैं जो पिछले दस मिनट से उसे अपलक निहारे जा रहा था (अब क्योंकि पूरे एक साल बाद उसे देखा था तो मैं उसकी पेंटिंग अपनी आँखों के कैनवस पर उतार लेना चाहता था), एकदम से सकपकाते हुए बोला- जब आप किसी के रहते हुए उसे उपमाओं में बाँध लेते हो तो उसके साथ आपका रहना मुश्किल हो जाता है। खासकर तुम जैसी सतरंगी लड़की के साथ।
क्या मतलब (वो चौंक कर बोली)?
मैं (मुस्कुराते हुए)- देखो मेरा कहने का मतलब है कि अगर मैं तुम्हारे रहते हुए तुम पर कविता लिखता और तुम्हें कोई उपमा देता तो मैं अपनी कविता को सच करने के लिए तुम्हे उसी रूप में देखने की लालसा रखता। जबकि तुम तो इंद्रधनुषी रंग में डुबा कर बनाई गई हो। जब भी मिलती थी तुम्हारा एक अलग ही रंग देखने को मिलता था।
थोड़ा और समझाने की कृपा करोगे (वो अजीब सा मुँह बनाते हुए बोली)
मैं- देखो अगर मैं तुम्हे गुलाब लिखता तो तुम्हारा सूर्यमुखी वाला चेहरा मुझे पसंद नही आता और अगर तुम्हारी नमकीन बातों का बखान अपनी कविता में करता तो तुम्हारी मिश्री वाली बातें मुझे सुनने में अच्छी नही लगती। यानी कि मैं तुम्हे हर रूप, हर चेहरे, हर बात, हर व्यवहार के साथ अपनाना चाहता था, तुम्हारी किसी विशेष या मेरी मनपसंद बातों के साथ नही और कविता में हमेशा किसी ख़ूबी का बखान किया जाता है। इसीलिए मैंने तुम्हारे साथ होते हुए तुम्हें किसी कविता तक सीमित नही किया।
यार तुम्हारी ऐसी ही बड़ी बड़ी और निराली बातें मुझे बोर किया करती थी पर सच कहूँ तो इस एक साल में मैंने इन्हें बहुत मिस किया। तुम किसी के भी अशांत मन को अपनी बातों से शांत कर सकते हो लेकिन क्या है ना कि लगातार एक जैसी बातें करते रहने और सुनते रहने से ज़िंदगी बोरिंग बन जाती है और समझदारी एक उम्र के बाद ही आये तो अच्छा है। क्योंकि जो मजा बेवकूफ़ और पागल बन के जीने में है ना वो समझदारी में नही (ये कहते हुए उसके चेहरे के भाव में वो संतोष था मानो वो बताना चाह रही हो कि उसका जाने का फैसला बिल्कुल सही था)
अमित 'मौन'
बढ़िया :)
ReplyDeleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचन आज शनिवार 5 दिसंबर 2020 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद! ,
जी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना आज शनिवार 12 दिसंबर 2020 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप सादर आमंत्रित हैं आइएगा....धन्यवाद! ,
ReplyDeleteसुन्दर सृजन।
बहुत बढ़िया
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