Sunday, 27 December 2020

सुख-दुःख

दुःखों का कोई तय ठिकाना नही होता
हम सुख ढूँढ़ते हैं, दुःख तक पहुँच जाते हैं ।

सुख बंजारे हैं भटकते रहते हैं
दुःख जगह ढूँढ़ते हैं और बस जाते हैं ।

सुख के दिन छोटे हुआ करते हैं
दुःख के हिस्से लंबी रातें हैं ।

हम सुख में कितना कुछ भूलने लगते हैं
दुःख आते ही सब कुछ पहचानते हैं ।

सुख कीमती है, डराकर रखता है
दुःख हिम्मत देते हैं, मज़बूत बनाते हैं ।

अमित 'मौन'

8 comments:

  1. उम्दा गीतिका।
    जाते हुए साल को प्रणाम।

    ReplyDelete
    Replies
    1. हार्दिक धन्यवाद आपका

      Delete
  2. बहुत सुन्दर

    ReplyDelete
  3. कितनी सच बात्यें हैं सभी ... सुख और दुःख में सम्बन्ध है और दोनों के अपने अपने अंदाज़ हैं ...
    नव वर्ष की मंगल कामनाएं ...

    ReplyDelete
    Replies
    1. हार्दिक धन्यवाद आपका

      Delete

अधूरी कविता

इतना कुछ कह कर भी बहुत कुछ है जो बचा रह जाता है क्या है जिसको कहकर लगे बस यही था जो कहना था झगड़े करता हूँ पर शिकायतें बची रह जाती हैं और कवि...