Friday 26 January 2018

Har subah naye sapne- हर सुबह नये सपने

हर सुबह एक अलग नये सपने सजाता हूँ
शाम तलक उन्हें मैं खुद ही भूल जाता हूँ

ख्वाहिशें हज़ार ले कर रोज़ कमाने जाता हूँ
बेच के ईमान खाली जेबें नही भर पाता हूँ

है मेरा भी कोई अपना ये सब को बताता हूँ
पर हूँ सच में अकेला ये सबसे छुपाता हूँ

मिलेगा मौका हंसने का सोच के गम भुलाता हूँ
मुठ्ठी भर खुशियों को मैं फिर भी तरस जाता हूँ

हर दर पे हूँ भटकता तलाश तो पूरी हूँ करता
पर ढूंढ़ने क्या निकला ये समझ नही पाता हूँ

दिया जीवन खुदा ने तो कुछ मकसद होगा
ये सोच के यारों मैं मर भी नही पाता हूँ

बस थोड़ी है राहें अब जल्द मिलेगी मंजिल
ये सोच कर 'मौन' बस बढ़ता चला जाता हूँ

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