जब से हमें अपने परायों की पहचान हो गयी
तन्हा ही रहता हूँ पूरी दुनिया वीरान हो गयी
तन्हा ही रहता हूँ पूरी दुनिया वीरान हो गयी
हँसी के ठहाके गूँजा करते थे जिन गलियों में
अब हाल यूँ की सारी सड़कें सुनसान हो गयी
अब हाल यूँ की सारी सड़कें सुनसान हो गयी
दिल की सुन उस ओर चल दिया करते थे कदम
ठोकरें जो लगी तो रूह से भी पहचान हो गयी
ठोकरें जो लगी तो रूह से भी पहचान हो गयी
ख्वाहिशों का बचपना भी चंचल ना रहा अब
उम्मीदों की हकीकत कुछ यूँ जवान हो गयी
उम्मीदों की हकीकत कुछ यूँ जवान हो गयी
बिन झरोखों के उजाले की आस रखूँ कैसे
वो टूटी झोपड़ी मेरी पक्का मकान हो गयी
वो टूटी झोपड़ी मेरी पक्का मकान हो गयी
'मौन' रहकर अब जज्बातों की स्याही बनाता हूँ
हाल-ए-दिल खुद लिखती है कलम महान हो गयी
हाल-ए-दिल खुद लिखती है कलम महान हो गयी
जिंदगी कईं कटु अनुभवों का पिटारा हो जाता है धीरे-धीरे
ReplyDeleteबहुत अच्छी प्रस्तुति
जी बहुत बहुत धन्यवाद आपका🙏
Deleteआदरणीय / आदरणीया आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद मंच पर 'सोमवार' २१ मई २०१८ को साप्ताहिक 'सोमवारीय' अंक में लिंक की गई है। आमंत्रण में आपको 'लोकतंत्र' संवाद मंच की ओर से शुभकामनाएं और टिप्पणी दोनों समाहित हैं। अतः आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/
ReplyDeleteटीपें : अब "लोकतंत्र" संवाद मंच प्रत्येक 'सोमवार, सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।
निमंत्रण
विशेष : 'सोमवार' २१ मई २०१८ को 'लोकतंत्र' संवाद मंच अपने साप्ताहिक सोमवारीय अंक के लेखक परिचय श्रृंखला में आपका परिचय आदरणीय गोपेश मोहन जैसवाल जी से करवाने जा रहा है। अतः 'लोकतंत्र' संवाद मंच आप सभी का स्वागत करता है। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/
झोंपड़ी जब मकान हो जाती है तो रौशनदान बंद हो जाते हैं ...
ReplyDeleteगहरा अर्थ लिए है ये शेर ...
जी शेर की गहराई में जाने के लिये शुक्रिया आपका🙏
Deleteख्वाहिशों का बचपना भी चंचल ना रहा अब
ReplyDeleteउम्मीदों की हकीकत कुछ यूँ जवान हो गयी
वाह वाह क्या खूब लिखा है...हर एक शेर अपने में यूनिक है.
ठोकरें लगती है तब पता चलता है कि ये जमाने के लोग तो अपने नहीं हैं लेकिन क्या अपनी रूह पर भी इस जमाने का कब्जा हो गया है.
लाजवाब गजल.
पहली बार आपके ब्लॉग पर आया हूँ और बहुत ही अच्छा लगा..तो follow भी कर रहा हूँ ताकि आगे भी अच्छा लगता रहे .. :) :D
मेरे ब्लॉग पर स्वागत है आपका--> हाथ पकडती है और कहती है ये बाब ना रख (गजल 4)
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