दायरों से निकलकर तुझे ख़ुद ही को आना होगा
बदन पे जमी धूल तुझे ख़ुद ही को हटाना होगा
परिंदों को सिखाता नहीं कला कोई उड़ान की
पंख हौसलों के लगा ख़ुद ही को उड़ाना होगा
दिखाने को आईना खड़ा हर शख़्स यहां राह में
अपनी नयी पहचान अलग ख़ुद ही को बनाना होगा
लब पे सदा मुस्कान तेरे ज़माने को दिखानी होगी
आंसू वहीं पलकों तले ख़ुद ही को सुखाना होगा
एक तुझमें है क्या क्या छुपा ख़ुद को जरा बता
ख़ुद की है औकात क्या ख़ुद ही को दिखाना होगा
सूरज तपे दिया जले तब उनको रौशनी मिले
पाने को आसमां तुझे ख़ुद ही को जलाना होगा
फिरता है बवंडर लिए तू ख़ुद की ही आग़ोश में
'मौन' इस आवाज़ को ख़ुद ही को सुनाना होगा
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