एक इशारे पे मर मिटा कोई दीवाना होगा
बिन शमा जल गया कोई परवाना होगा
रोशन है ये महफ़िल कई चिराग़ों से अभी
सहर होते ही बंजर जमीं पे वीराना होगा
प्याले भर गये अब जाम छलका करता है
जो मय की आरज़ू होगी खाली पैमाना होगा
हुस्न-ए-इश्क़ की आग़ोश में लिपटा है अभी
गम-ए-तन्हाई हर आशिक़ का नज़राना होगा
हसरतों का जोर ना चला एक 'मौन' के आगे
टीस ग़हरी है आहों की ये ज़ख़्म पुराना होगा
वाह ...
ReplyDeleteअच्छे शेर हैं सभी इस ग़ज़ल के ...
जी बहुत बहुत धन्यवाद आपका🙏
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