ख़ज़ान के दिनों में धूप सहा नही करते
उस बूढ़े शज़र पे अब परिंदे रहा नही करते
उस बूढ़े शज़र पे अब परिंदे रहा नही करते
बेटे बड़े होकर अब ख़ुद में मशगूल रहते हैं
हक़ वालिद की परवरिश का अदा नही करते
हक़ वालिद की परवरिश का अदा नही करते
अम्मी भी जाने क्यों आस लगाये रखती है
क्या कुछ लोग बिन औलादों के जिया नही करते
क्या कुछ लोग बिन औलादों के जिया नही करते
जख़्मों के नासूर बनने का इंतज़ार करते हैं
बड़े अजीब लोग हैं जो इसकी दवा नही करते
बड़े अजीब लोग हैं जो इसकी दवा नही करते
ख़ुदा ख़्यालों में भी यही सोचता होगा
अब इंसान लंबी उम्र की दुआ नही करते
अब इंसान लंबी उम्र की दुआ नही करते
रिश्तों में दीवारें अब लंबी हो गई हैं
इन ऊँचे घरों में झरोखे हुआ नही करते
इन ऊँचे घरों में झरोखे हुआ नही करते
रिवायतें जमाने की अब बदल गयी हैं 'मौन'
ख़ुद में कर तब्दीलियाँ औरों से गिला नही करते
ख़ुद में कर तब्दीलियाँ औरों से गिला नही करते
बहुत ख़ूब ..।
ReplyDeleteकुछ लाजवाब शेर ... बहुत उमदा ...
बहुत बहुत शुक्रिया आपका
Deleteहार्दिक आभार आपका
ReplyDeleteइससे खूबसूरत भी क्या लाजवाब शेर ... बहुत उमदा ...
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया आपका
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