ये आज का इंसान इतना सयाना क्यों है
अब आदमी ही आदमी से अनजाना क्यों है
झूठों की बस्ती है क़ीमत लहू की सस्ती है
फिर सच बयानी पे जान का जुर्माना क्यों है
तकनीक से बच्चे हुए हम बाप बन गए
दुलार में बिगाड़ें और पूछें बेटा मनमाना क्यों है
बातें लाज शरम की दो टके की हो चली
बेटी माँ से बोली आपका अंदाज़ पुराना क्यों है
लैला के नखरों से चाँदनी भी घबराने लगी
चाँद मजनूं से पूछे तू हुस्न का दीवाना क्यों है
सूरत पे लाली सीरत है काली हर किसी की यहाँ
असल को परे रख नकाबी चेहरा सजाना क्यों है
मार धक्का दूसरे को आगे निकलने की होड़ है
बढ़ रहे कदम अपने पर औरों को गिराना क्यों है
खाली हाथ आया और हाथ खाली ही रुख़्सती तय है
भर के माल किसी कंगाल को अमीरी दिखाना क्यों है
मियाँ की दौड़ कभी मस्ज़िद तलक रहती थी
अब ये आदम उस ख़ुदा से ही बेगाना क्यों है
घड़ा पाप वाला हर किसी का अब भरने लगा है
'मौन' अब यही सोचूँ सभी को गंगा नहाना क्यों है
अब आदमी ही आदमी से अनजाना क्यों है
झूठों की बस्ती है क़ीमत लहू की सस्ती है
फिर सच बयानी पे जान का जुर्माना क्यों है
तकनीक से बच्चे हुए हम बाप बन गए
दुलार में बिगाड़ें और पूछें बेटा मनमाना क्यों है
बातें लाज शरम की दो टके की हो चली
बेटी माँ से बोली आपका अंदाज़ पुराना क्यों है
लैला के नखरों से चाँदनी भी घबराने लगी
चाँद मजनूं से पूछे तू हुस्न का दीवाना क्यों है
सूरत पे लाली सीरत है काली हर किसी की यहाँ
असल को परे रख नकाबी चेहरा सजाना क्यों है
मार धक्का दूसरे को आगे निकलने की होड़ है
बढ़ रहे कदम अपने पर औरों को गिराना क्यों है
खाली हाथ आया और हाथ खाली ही रुख़्सती तय है
भर के माल किसी कंगाल को अमीरी दिखाना क्यों है
मियाँ की दौड़ कभी मस्ज़िद तलक रहती थी
अब ये आदम उस ख़ुदा से ही बेगाना क्यों है
घड़ा पाप वाला हर किसी का अब भरने लगा है
'मौन' अब यही सोचूँ सभी को गंगा नहाना क्यों है
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