ग़र इश्क़ का कोई सार लिखूं
उसको ही बारंबार लिखूं
जो प्रेमपाश का वर्णन हो
उसकी बाहों का हार लिखूं
कविता की पहली पंक्ति वो
जब लय में कोई गज़ल लिखूं
मैं एक सरोवर हो जाऊं
और उसको अपना कमल लिखूं
उसे अल्हड़ मस्त बयार कहूँ
मौसम की कोई बहार कहूँ
लिख दूँ बरखा की बूँद उसे
सावन का पहला प्यार लिखूं
ज्यों फूलों की नाज़ुक कलियाँ
भंवरे करते जब रंगरलियां
खिलते ग़ुल का वो नज़राना
संदल सी उसकी महक लिखूं
नदियों जैसी वो बल खाये
ज्यों सागर से लहरें आये
ठंडी शामों में साहिल पे
ना मिट पाये वो नाम लिखूं
वो मंद मंद जब मुस्काए
और लट ऊँगली से सुलझाए
उन अधरों से रस पान करूं
मैं यौवन का गुण गान लिखूं
वो जब जब पायल छनकाए
और साथ मे कंगन खनकाए
मैं उसका वो श्रृंगार लिखूं
अब मिलन को हूँ तैयार लिखूं
अब मिलन को हूँ तैयार लिखूं...
ग़र इश्क़ का कोई सार लिखूं
उसको ही बारंबार लिखूं....
उसको ही बारंबार लिखूं
जो प्रेमपाश का वर्णन हो
उसकी बाहों का हार लिखूं
कविता की पहली पंक्ति वो
जब लय में कोई गज़ल लिखूं
मैं एक सरोवर हो जाऊं
और उसको अपना कमल लिखूं
उसे अल्हड़ मस्त बयार कहूँ
मौसम की कोई बहार कहूँ
लिख दूँ बरखा की बूँद उसे
सावन का पहला प्यार लिखूं
ज्यों फूलों की नाज़ुक कलियाँ
भंवरे करते जब रंगरलियां
खिलते ग़ुल का वो नज़राना
संदल सी उसकी महक लिखूं
नदियों जैसी वो बल खाये
ज्यों सागर से लहरें आये
ठंडी शामों में साहिल पे
ना मिट पाये वो नाम लिखूं
वो मंद मंद जब मुस्काए
और लट ऊँगली से सुलझाए
उन अधरों से रस पान करूं
मैं यौवन का गुण गान लिखूं
वो जब जब पायल छनकाए
और साथ मे कंगन खनकाए
मैं उसका वो श्रृंगार लिखूं
अब मिलन को हूँ तैयार लिखूं
अब मिलन को हूँ तैयार लिखूं...
ग़र इश्क़ का कोई सार लिखूं
उसको ही बारंबार लिखूं....
बेहतरीन कविता
ReplyDeleteआत्मसात
वाह...मदमस्त कर गई आपकी कविता...
ReplyDelete