गिरा है जो उठा ना हो, जो उठ गया गिरा नही
जो पास है तेरा ही है, जो ना मिला तेरा नही
आदि है अनंत है, प्रयत्न का ना अंत है
मार्ग जो दिखाएगा, प्रयास ही वो संत है
डर नही अंधेरों से, अगले पहर में भोर है
बंद नेत्र खोल दे, प्रकाश चारों ओर है
जला ना जो तपा ना जो, हुआ है वो बड़ा नही
पक के फिर पाषाण बन, मिट्टी का घड़ा नही
समुद्र सा हो शांत पर, नदियों जैसा वेग हो
बेताबियाँ हों इस क़दर, कि लहरों से भी तेज़ हो
ख़ुद पे हो यक़ीन भी, हौसला बुलंद हो
है जीत निश्चित तेरी, जो मुश्किलों से द्वंद हो
जज़्बों की पतंग को, आसमां में छोड़ दे
डर की हैं जो बेड़ियाँ, आज सारी तोड़ दे
जो मंज़िलों पे हो नज़र, तो रास्तों से कैसा डर
जीत का जुनून रख, तू बैठना ना हार कर
अमित 'मौन'
वाह
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