पूर्व काल में प्रेम परिभाषित नही था, प्रेम पर उपमाएं नही गढ़ी गयी थी और ना ही कोई प्रचलित प्रेम कथा थी बस प्रेम था अपने वास्तविक रूप में...प्रेम के अथाह सागर में गोते लगाते हुए प्रेम को महसूस किया जाता था, प्रेम को जिया जाता था..
क्योंकि तब प्रेम में प्रतियोगिता नही थी प्रेम का कोई मापदंड नही था...शायद इसीलिए उस काल में प्रेमी अमर हुए और उनका प्रेम हुआ अमर प्रेम....
स्मरण रहे...
प्रेम में अपेक्षा नही प्रतीक्षा की जाती है..
प्रेम किसी के प्रति अनुभूति है सहानुभूति नही...
प्रेम का पूर्वाभास नही होता प्रेम होने पर एहसास होता है..
प्रेम में आपको कुछ विशेष अपर्ण नही करना होता प्रेम में समर्पण करना होता है...
प्रेम को अपने अनुरूप नही ढालना होता प्रेम में वास्तविकता को स्वीकार करना होता है...
प्रेम को किसी कसौटी पर परखा नहीं जाता प्रेम स्वयं में सम्पूर्ण होता है...
प्रेम सिर्फ मोह या लगाव नहीं प्रेम एक भाव है...
प्रेम कोई मंज़िल या पड़ाव नही जिसे प्राप्त करने का प्रयत्न किया जाए प्रेम एक अनवरत सफर है जिसमें बिना थकान एवं हताशा के सतत बढ़ना होता है....
अगर आप इन सभी बातों को मन मष्तिष्क में जगह दे पाएंगे तो प्रेम के नाम पर होने वाले अवसाद से बचे रहेंगे और प्रेम का आनंद ले पाएंगे.....
----अमित 'मौन'----
No comments:
Post a Comment