Monday 25 March 2019

मैं प्रेम में हूँ

रेगिस्तान ढक दिए जाएंगे समंदर के पानी से
मछलियाँ साहिल पे गुफा बना कर रहने लगेंगी
तितलियाँ पेड़ों पर अपने घोसलें बना लेंगी
सारे पक्षी मिलकर एक नया शहर बसा लेंगे
नदियाँ पहाड़ों से नीचे आना बंद कर देंगी
जब इंसान सिर्फ़ चाँद पर रहा करेंगे

मैं सूरज से एक घोड़ा माँग लूँगा और तुम्हे लेकर मंगल ग्रह पर चला जाऊंगा....
सच बताऊं तो मंगल बिल्कुल तुम्हारी तरह दिखता है....सुर्ख लाल..

तुम कहती हो ना कि प्रेम में सब संभव है..तो..मेरी बातों पर यकीन करो.....

क्योंकि मैं प्रेम में हूँ...

मेरी आँखों मे झाँक कर अपनी दुनिया देखी है जानां... कभी कोशिश करना..सच कहता हूँ कल्पना कम पड़ जाएगी.....

अमित 'मौन'

8 comments:

  1. बहुत सुंदर कल्पना है आपकी शुभकामनाएं

    ReplyDelete
  2. क्योंकि मैं प्रेम में हूँ...

    जी हाँ प्रेम में ऐसा ही होता है
    बहुत सुंदर प्रेमपरक रचना

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत धन्यवाद आपका

      Delete
  3. बहुत खूब ... मैं प्रेम हूँ ...
    इस प्रेम की कसक महसूस हो रही है इन शब्दों में ... लाजवाब रचना ...

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत धन्यवाद आपका

      Delete
  4. Replies
    1. बहुत बहुत धन्यवाद आपका

      Delete

अधूरी कविता

इतना कुछ कह कर भी बहुत कुछ है जो बचा रह जाता है क्या है जिसको कहकर लगे बस यही था जो कहना था झगड़े करता हूँ पर शिकायतें बची रह जाती हैं और कवि...