तन्हाई के तकिये तले जलती रही
एक आस की लौ
आँसुओं की ओस में भीग रही
दो अधखुली आँखें
पलकों के दरवाजे पर दस्तक
दे रही है नींद
इंतज़ार में अपनी बारी के
थक गया है ख़्वाब
सितारों संग रात की चौकीदारी में
लगा रहा वो चाँद
और फिर हर्फ़ की मद्धम आँच में
पक गयी एक नज़्म
अमित 'मौन'
नज़्म यूं ही पका करती है
ReplyDeleteसुंदर रचना
धन्यवाद आपका🙏
Deleteब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 17/04/2019 की बुलेटिन, " मिडिल क्लास बोर नहीं होता - ब्लॉग बुलेटिन “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका🙏
Deleteसुन्दर
ReplyDeleteधन्यवाद आपका
Deleteबहुत सुंदर।
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद आपका
Deleteसुंदर प्रस्तुति
ReplyDeleteधन्यवाद आपका
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