चुनाव:
मुझे बुद्ध के मार्ग पर चलना था तो मैंने कृष्ण का उपाय चुना....
जैसे कृष्ण ने संधि और युद्ध में से युद्ध को चुना ताकि शांति लाई जा सके, वैसे ही मैंने तुम्हें ना पाने की व्यथा और तुम्हारे चले जाने के दुःख में से किसी एक को चुनने के क्रम में अपने भीतर चल रहे द्वंद पर विजय पाते हुए तुम्हे जाने देने की अनुमति को चुना..
ताकि उम्र भर इस भ्रम में जी सकूँ की शायद तुम मेरे लिए बनी ही नही थी और साथ में ये सुकून भी रहे कि तुमने अपना चुनाव स्वयं किया और शायद तुम खुश होगी.....
समर्पण की प्रक्रिया का पहला चरण पार करते हुए मैंने तुम्हारी ख़ुशी को अपनी प्रसन्नता का कारण मान लिया.....
अमित 'मौन'
जी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (13 -07-2019) को "बहते चिनाब " (चर्चा अंक- 3395) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
….
अनीता सैनी
हार्दिक आभार आपका
Deleteबहुत सुंदर प्रस्तुति मन के द्वंद पर विजय सदा समानांतर राहें प्रस्सत करती है।
ReplyDeleteअनुपम लेखन।
बेहद शुक्रिया आपका
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