मैंने आँखों में झाँक कर इजाज़त लेनी चाही मगर हर बार उसने नजरें मिलने से पहले ही पलकें झुका ली...
आँखों की सहमती ना मिल पाने के कारण मेरे होंठों ने मौन रहना चुना...
इज़हार के बाद उसके इंकार या स्वीकार के असमंजस ने मुझे प्रेम पत्र लिखने से रोक दिया...
मैंने अपने मन के भावों को कविता का रूप दे दिया और रच डाली कई कविताएं....
मैंने कविताओं में वो सब लिखा जो मैं उससे कहना चाहता था.....
उसने वो कविताएं पढ़ीं और उसे कवि से प्रेम हो गया....
अब मैं उसे महसूस करके कविता लिखता हूँ और वो कविता पढ़ती हुई मुझे महसूस करती है....
अमित 'मौन'
No comments:
Post a Comment