आज पहली बार इस डायरी में कुछ लिखने जा रहा हूँ।
तुम अक़्सर कहा करती थी ना कि अगर तुम्हें लिखने का इतना ही शौक है तो डायरी में लिखना क्यों नहीं शुरू कर देते और इसीलिए तुमने ये डायरी मुझे तोहफ़े में दी थी।
मैं अक़्सर ये कहते हुए तुम्हारी बात टाल जाया करता था कि भला इस मोबाइल के ज़माने में डायरी में कौन लिखा करता है...आख़िर हम भी तकनीकी बदलाव के दौर से गुजर रहे हैं तो हमें भी तकनीक के साथ चलना होगा।
पर आज सोच रहा हूँ कि काश तुम्हारी बात उस समय मान ली होती तो अच्छा होता। वो क्या है कि आज अचानक ही मेरा मोबाइल ख़राब हो गया और ऐसा बंद हुआ कि अब खुलने का नाम नही ले रहा।
मेकैनिक कहता है कि खुल तो जाएगा मग़र इसका सारा डाटा उड़ जाएगा। मेरे ख़्यालों और जज्बातों को (जो इस मोबाइल के नोटपैड में मैंने समेट कर रखे हुए थे) इनकी भाषा में डाटा कहते हैं।
अब मेरा वो डाटा नही रहा जिसमें मैंने वो सब लिखा था जो तुम्हारे ना होने के दौरान मैंने महसूस किया था। मेरा वो हर दर्द, हर आँसू, सारी पीड़ा, संवेदनाएं, भावनाएं और जाने क्या क्या जिनसे मैं होकर गुजरा था। जिनको मैं किसी से कह नही सकता था (हाँ हाँ तुमसे भी नही), वो सब उस डाटा के साथ उड़ गया या यूँ कहूँ ख़त्म हो गया।
बस नहीं ख़त्म हुआ तो तुम्हारे साथ बिताए वक़्त की ख़ुशी और तुम्हारे जाने का पछतावा। काश ये सब भी एक डाटा होता जो कभी मेरे ज़हन से उड़ पाता।
ख़ैर ये डाटा तो फ़िर से बन जाएगा क्योंकि उन सभी हालातों से मुझे फ़िर से गुजरना है, पर इस बार मैं सब कुछ डायरी में लिखूँगा।
वैसे डायरी भी तो खो सकती है ना?
पर शायद इस डाटा को ये नही पता कि एक डाटा मेरी रूह, मेरी आत्मा, मेरे दिल और मेरे दिमाग़ में भी स्टोर है, और वो कभी नही उड़ेगा। शायद कभी नही...
मेरे जीते जी तो नही......
अमित 'मौन'
वाह! बहुत शानदार खयाल।
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है।
iwillrocknow.com
धन्यवाद आपका
Delete