ज़िंदगी कट तो रही थी तुमसे पहले भी
ज़िंदगी कट जाएगी तुम्हारे बाद भी
तुम आए तो यूँ लगा मानो खुशियाँ वो नाव बनकर आयी हों जो बस अभी मेरे हाथों में पतवार थमाकर मुझसे कहने वाली हों कि सुनो अब इस गम की दलदल से बाहर निकलो और चलो साहिल पर जहाँ एक नई दुनिया तुम्हारा इंतज़ार कर रही है...
पर तुम यादों की गठरी का बोझ और बढ़ाकर चले गए..अब इस गठरी को ताउम्र उन कंधों पर ढोना पड़ेगा जो पहले ही झुके हुए हैं....
तुम आये तो कुछ यूँ हुआ कि जैसे मुरझाए फूल को कोई ऐसी खाद मिल गयी हो जिससे वो कुछ और दिन इस उपवन में मुस्कुराता हुआ इस बगिया को महका सके...
पर फूल की क़िस्मत में आख़िर मुरझाना ही लिखा है...
तुम आये तो कुछ यूँ हुआ कि सूखे तालाब में फ़िर से पानी भर गया और जल बिन तड़पती मछलियों को कुछ और दिन की ज़िंदगी मिल गयी....
पर मछलियों की क़िस्मत में ज्यादा जीना कहाँ लिखा होता है...
तुम आए तो यूँ लगा कि अमावस की इस काली रात में सैकड़ों जुगनू मिलकर इस अँधेरे को बढ़ने से रोक लेंगे...
पर उन जुगनुओं में वो रोशनी नही जो रात से मुकाबला कर सकें....
पर ख़ुशी है मुझे की तुम आए क्योंकि तुम्हारे आने के बाद और जाने से पहले के बीच का जो वक़्त है ना उसमें मैंने एक और ज़िंदगी जी है...
और फ़िर मेरा क्या है...मेरे लिए तो बस इतना है कि...
एक ज़िंदगी में कई ज़िंदगी जी रहा हूँ मैं
दर दर की ठोकरें खाकर आँसू पी रहा हूँ मैं
अमित 'मौन'
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ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद आपका
ReplyDeleteजी बहुत ही प्यारी रचना ।
ReplyDeleteबेहद शुक्रिया आपका
Deleteसुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteजी धन्यवाद आपका
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