चाहता मैं भी हूँ मैं उधर जाऊं
है नही वो वहाँ फ़िर भी घर जाऊं
गाँव की सारी गलियों में देखा उसे
ढूँढ़ने अब उसे मैं शहर जाऊं
इश्क़ का दे रहे हो मुझे वास्ता
अब जो है ही नही कैसे डर जाऊं
मौत आगे खड़ी पीछे ग़म की झड़ी
अच्छा तुम ही कहो मैं किधर जाऊं
जिस्म से रूह मेरी जुदा हो चली
एक नज़र उस को देखूँ तो मर जाऊं
अमित 'मौन'
वाह ... अच्छे शेर हैं ग़ज़ल के ...
ReplyDeleteबेहद शुक्रिया आपका
Deleteवाआआह बहुत खूब कहा, बेहतरीन ग़ज़ल...
ReplyDeleteबेहद शुक्रिया आपका
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