Friday, 27 September 2019

कहना ये था

लाख वादे हज़ार कसमें
यूँ ही फ़ना हुए
शिकायतों की फ़ेहरिश्त लिए
पास रह ना सका
कितना कुछ कहना था
आख़िरी अलविदा से पहले
पर हुआ यूँ कि
मैं तुमसे कुछ कह ना सका

कहना ये था कि
एक दुनिया सजायी थी तेरे संग
भर दिए थे तुमने जिसमें
वादों के गहरे चटक रंग
पर एक स्याह रंग के सिवा
कोई रंग उसमें रह ना सका
और हुआ यूँ कि
मैं तुमसे कुछ कह ना सका

कहना ये था कि चल पड़ो
साथ एक हसीन सफ़र पर
थामे रखूँगा तेरी हथेली
जीवन की हर डगर पर
पर इन तंग राहों में
संग तू रह ना सका
और हुआ यूँ कि
मैं तुमसे कुछ कह ना सका

कहना ये था कि
बांध लेंगे प्रीत की ऐसी डोर
तोड़ पाएगा ना जहां
लगाए कितना भी जोर
पर एक धागा महीन
ये बोझ सह ना सका
और हुआ यूँ कि
मैं तुमसे कुछ कह ना सका
 
कहना ये था कि
संग तेरे हर हाल में रहना था
तेरे संग ही रोना
तेरे संग ही हँसना था
जो बिछड़े हैं अब
तो एक आँसू भी बह ना सका
और हुआ यूँ कि
मैं तुमसे कुछ कह ना सका

था हर सांस तेरे होने का एहसास
ना जी सकूँगा जो टूटी है ये आस
आख़िरी पलों की कश्मकश भी
मैं सह ना सका
और बदकिस्मती ये कि
मैं तुमसे कुछ कह ना सका

मैं तुमसे कुछ कह ना सका...

अमित 'मौन'

4 comments:

  1. मौन होना कोई आसाँ तो नहीं।
    कसक जो बाकी है छलक पड़ी है।
    बेहद ही खूबसूरत भावपूर्ण अभिव्यक्ति।
    पधारें - शून्य पार 

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    Replies
    1. बहुत बहुत धन्यवाद आपका

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  2. जी नमस्ते,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा रविवार (29-09-2019) को "नाज़ुक कलाई मोड़ ना" (चर्चा अंक- 3473) पर भी चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।

    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।

    आप भी सादर आमंत्रित है
    .--
    अनीता सैनी

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