सपने वो हैं जो बंद आँखों से देखे गए हों, खुली आँखें सिर्फ़ भ्रम पैदा करती हैं।
हमारा वही है जो हमनें हासिल किया है जो ख़ुद मिल गया वो किसी और का है।
रुका वहीं जा सकता है जहाँ हम चल के गए हों, अगर कोई हम तक चल कर आया है वो आगे भी जा सकता है।
कुछ लालच बुद्धि को हर लेते हैं फ़िर पछतावा पूरे शरीर पर हावी हो जाता है।
प्रेम के आकर्षण में हम अक़्सर लालची हो जाते हैं और जाने कितने भ्रम पाल लेते हैं।
पछतावे में हमारी हालत ठीक वैसी ही होती है, जैसे नदियाँ जलकुंभियों को दुनिया घुमाने का लालच दिखाकर शहरों के किनारे कचरा बनने के लिए छोड़ आती हैं।
जैसे ग़ुलाब को काँटों से बचाने का लालच देकर तोड़ लिया जाता है और फ़िर किसी क़िताब में सूखने के लिए छोड़ दिया जाता है।
जैसे खाली सड़कें जल्दी पहुँचाने का लालच देकर मुसाफ़िर को छोड़ देती हैं किसी सुनसान जंगल में डर जाने के लिए।
जैसे रक़म दोगुनी करने का लालच देकर कोई ठग ले जाता है तुम्हारी सारी गाढ़ी कमाई और छोड़ जाता है तुम्हे पछतावे के साथ।
वैसे ही कोई तुम्हे ढेर सारा अपनापन दिखाकर तुम्हारे अपनों से दूर कर देता है और एक दिन ख़ुद पराया होकर तुम्हें अकेला छोड़ देता है।
अमित 'मौन'
बहुत सुन्दर रचना
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद आपका
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ReplyDeleteजी नमस्ते,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की शनिवार(१४-०३-२०२०) को "परिवर्तन "(चर्चा अंक -३६४०) पर भी होगी।
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
….
अनीता सैनी
बहुत बहुत धन्यवाद आपका
Deleteसटीक
ReplyDeleteधन्यवाद आपका
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ReplyDeleteसुन्दर सूक्तियाँ।
ReplyDeleteधन्यवाद आपका
Deleteबहुत गहरा चिंतन ,लाज़बाब सृजन ,सादर
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद आपका
Deleteआपकी पोस्ट दिल को छूने वाली है।
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद आपका
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