हर रोज परिवर्तित होती इस दुनिया से सामजंस्य बिठाने में असफल रहते हुए मैं हमेशा मंदबुद्धि की श्रेणी में रहा।
जब दुनिया के सभी ज्ञानी
ख़ुद को श्रेष्ठ बनाने की प्रक्रिया में व्यस्त थे
तब मैंने पिछले दरवाजे से निकल कर
ख़ुद को बचा लिया।
जब सभी ख़रगोश
चीता बनकर दौड़ लगाने आए
तब मैंने घोड़े की छतरी उतार कर
कछुए का कवच धारण कर लिया।
पूरी दुनिया को एक संख्या में बाँधकर जब बाकी लोग ब्लैक होल की गहराई नापने चले गए
तब मैंने अपना वक़्त,
दिन और रात की सच्चाई जानने में लगाया
और ये पाया कि
जागकर काटी गई रातें
सोकर बितायी रातों की तुलना में
ज्यादा लंबी होती हैं।
प्रियजनों के साथ बिताया साल
महीनों से पहले ख़त्म हो जाता है
और इंतज़ार का एक घंटा
पूरे दिन से बड़ा होता है।
पृथ्वी के निरंतर घूमते रहने के कारण
दुनिया का संतुलन हमेशा बिगड़ा रहता है।
बाढ़ और सूखे की लड़ाई में
मृत्यु हमेशा इंसानों की होती है।
ईश्वर को अपना अस्तित्व बचाये रखने के लिए
त्रासदियों का सहारा लेना पड़ता है।
ख़ुद को खोजने की प्रक्रिया में
हम संसार को बेहतर तरीके से जान पाते हैं।
अमित 'मौन'
सादर नमस्कार ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार(18-02-2020 ) को " "बरगद की आपातकालीन सभा"(चर्चा अंक - 3615) पर भी होगी
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
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कामिनी सिन्हा
बेहद शुक्रिया आपका
Deleteमृत्यु हमेशा इंसानों की होती है।
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