Monday 10 August 2020

ऐसा भी क्या बिगड़ा है

ये जो प्यारा मुखड़ा है

क्यों ऐसे उखड़ा उखड़ा है


प्यार, मोहब्बत और ये शिक़वे
हर प्राणी का दुखड़ा है

नही अकेला तू ही भोगी
सबको ग़म ने रगड़ा है

कौन सही है कौन ग़लत है
सदियों से ये झगड़ा है

छोड़ उदासी ख़ुशी ओढ़ ले
दुःख क्यों कस के पकड़ा है

हँसी सजा ले चेहरे पर क्यों
गुस्से में यूँ अकड़ा है

शेष अभी है पूरा जीवन
ऐसा भी क्या बिगड़ा है

अमित 'मौन'

Pic Credit: GOOGLE

8 comments:

  1. छोड़ उदासी ख़ुशी ओढ़ ले
    दुःख क्यों कस के पकड़ा है

    ..
    शेष अभी है पूरा जीवन
    ऐसा भी क्या बिगड़ा है

    वाह बहुत खूब!

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत धन्यवाद आपका

      Delete
  2. बहुत सुंदर

    ReplyDelete
  3. हार्दिक धन्यवाद आपका

    ReplyDelete

अधूरी कविता

इतना कुछ कह कर भी बहुत कुछ है जो बचा रह जाता है क्या है जिसको कहकर लगे बस यही था जो कहना था झगड़े करता हूँ पर शिकायतें बची रह जाती हैं और कवि...