दूर जाऊं तो मन ही मन जाने क्या बड़बड़ाती थी
अगर पास भी आऊं तो हड़बड़ा के भाग जाती थी
वो खुद तो मेरे आंगन में रोज गुटरगूँ कर जाती थी
चौबारे पे खड़ी मेरी कुकड़ू कूँ नही सुन पाती थी
एक दिन ना दिखूँ तो जाने कितना छटपटाती थी
फिर एकदम से आ जाऊं तो सकपका जाती थी
अब ऐसे मैं क्या बताऊँ वो कितना बकबकाती थी
बस इतना समझ लो उसकी बातें बहुत पकाती थी
बात सच है उसकी सहेलियां मुझे बड़ा डराती थी
मधुमखियों की तरह ही एक साथ भिनभिनाती थी
खुली आँखों से ही जाने कितने सपने बुन जाती थी
अकेले ही बैठे बैठे जाने कौन सा गीत गुनगुनाती थी
मुझे उकसाने के लिये ही वो अक्सर मुझे चिढ़ाती थी
मैं तो घबराता था पर वो बेझिझक प्यार जताती थी
आज वो नही पर उसकी यादें मुझे बड़ा सताती हैं
वो टूट के चाहा करती थी सहेलियां मुझे बताती हैं
वो उसकी बातें अब भी मेरे कानों में कुलबुलाती हैं
उसकी बदमाशियां आज भी मुझे बड़ा गुदगुदाती है
वो अब भी मेरे ख्वाबों में अठखेलियाँ करने आती है
मेरी सुनती नही बस अपनी ही मनमर्जियां चलाती है
आज भी अगर किसी शाम मेरी आँख फड़फड़ाती है
ये मिन्नतें मांगती हैं उसे देखने को और गिड़गिड़ाती है
वैसे तो अब भी मेरे दिन कटते हैं शामें गुजर जाती है
पर मैं उसे कैसे भुलाऊँ वो अब ज्यादा याद आती है
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