*****स्वयंवर*****
तोड़ धनुष जब शिव जी का
मन ही मन राम हर्षाये थे
भये प्रसन्न सब देव स्वर्ग में
नभ से ही पुष्प बरसाये थे
प्रत्यंचा जो धनुष की टूटी
चहुँ ओर एक झंकार हुई
परशुराम पहुँचे स्थल पर
वाणी से सिंह हुँकार हुई
क्रोधाग्नि से परशुराम की
सभा मे जब भय व्याप्त हुआ
साक्षात प्रभू फिर दर्श दिये
संवाद का अवसर प्राप्त हुआ
हरि नारायण थे सन्मुख उनके
ये परशुराम को बोध हुआ
व्याकुल मन मे व्यथा ना रही
क्षण में ही दूर क्रोध हुआ
कुछ कार्य विशेष करने हेतु
खुद विष्णु जी हैं प्रकट हुए
देवी सीता हैं माता लक्ष्मी
अब नारायण इनके निकट हुए
मिली स्वीकृति फिर विवाह को
एक उत्सव की शुरुआत हुई
अंत निकट है कुछ दुष्टों का
सब देव गणों में बात हुई
डाल गले में वरमाला फिर
सीता ने श्रीराम अपनाये थे
आरंभ स्वयंवर उस कारण का
जिस कारण प्रभू धरा पर आये थे
हार्दिक धन्यवाद आपका
ReplyDeleteसुंदर प्रसंग ... behteeen शब्द ...धाराप्रवाह .।.
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद आपका
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