गाँव वाले घर के सामने जो जगह खाली पड़ी थी वहाँ धूप बहुत आती थी। दिन में उसका कोई उपयोग होता नही था पर शाम को अक्सर छोटे बच्चे वहां जरूर खेल लिया करते थे पर पता नहीं कैसे वहां एक नीम का पेड़ उग आया शायद किसी चिड़िया ने लाकर बीज फेंक दिया होगा..खैर दादी ने देखा तो सोचा चलो अब उग ही गया है तो बड़ा हो जाने दो और उन्होंने उसके इर्द गिर्द चंद ईंटें लगा दी ताकि कोई बच्चा खेलते खेलते उसे तोड़ न दे।
और जैसा कि अक्सर होता है पेड़ को बस जमीन चाहिए होती है और अगर वो मिल जाए तो वो अपने आप अपना पालन पोषण कर लेता है और इसी तरह वो पेड़ भी अपने आप बड़ा हो गया..हालाँकि जब तक वो बड़ा नही हुआ था तब तक किसी को उससे कोई उम्मीद नही थी पर जैसे ही वो बड़ा हुआ हर किसी को उसकी जरूरत आन पड़ी, किसी को सुबह उसकी दातून चाहिए थी किसी को उसकी पत्तियां ताकि पानी मे उबालकर बच्चों को नहला सकें (नीम की पत्तियों से नहलाने से कई रोग दूर होते हैं)।
वो पेड़ जैसे जैसे बड़ा हो रहा था उससे उम्मीदें भी बढ़ती जा रही थी और अब वो एक विशाल वृक्ष बन चुका था इतना बड़ा की कई लोग एक साथ बैठ कर उसकी छाँव तले समय बिता सकते थे।
फिर एक दिन सब ने मिलकर तय किया कि यहाँ एक चबूतरा बनाया जाए ताकि दिन में सभी लोग यहाँ बैठ सकें , फिर क्या था अगले दिन मजदूर बुला कर पेड़ के चारों तरफ से एक गोल सा चबूतरा बना दिया गया...वो पेड़ बड़ा खुश था कि लोग उसे कितना प्यार करने लगे हैं सब उसे कितना अपनापन देने लगे हैं आखिर हर रोज कुछ लोग आकर उस चबूतरे पर बैठ कर घंटों बातें किया करते थे और छोटे बच्चों के लिए तो वो खेल का मैदान बन गया था...
अब वो पेड़ भी अपनी पूरी कोशिश करता था अपनी छाया में आए सभी लोगों को पूरा आराम देने की...पर इसी कोशिश में वो ये भूल गया था कि चबूतरा बन जाने के कारण उसकी जड़ों को पानी नही मिल पा रहा था..और तो और वो जड़ें सूर्य की किरणों तथा वायु से भी वंचित हो रही थी जो की उसके विकास के लिए अति आवश्यक है।
अब उस पेड़ को भी तकलीफ होने लगी थी पर वो अपनी तकलीफ को नजरअंदाज करता हुआ पूरी कोशिश करता रहा कि वो उसकी छाँव का आनंद लेने वालों को संतुष्ट करता रहे...और जैसे कि अपेक्षित था कुछ दिनों बाद उसकी पत्तियां कम होने लगी, पत्तियों के झड़ने से छाँव कम होने लगी...फिर एक दिन उसने चबूतरे पर बैठने वालों को कहते सुना कि अब ये पेड़ बूढ़ा हो चला अब इसकी छाँव पहले जैसी नही रही...उन्हें शायद इस बात का अंदाज़ा नही था कि पेड़ के जल्दी बूढ़े होने का कारण वो स्वयं थे....पेड़ को बड़ा दुख हुआ पर वो कर भी क्या सकता था.. मन तो उसका भी था सबको खुश रखने का पर परिस्थितियाँ उसके वश में कहाँ थी...
समय बीतता गया.....अब लोगों ने उसके पास आना छोड़ दिया था वो पूरी तरह अकेला हो चुका था....आख़िरकार एक दिन ऐसा आया जब वो पूरी तरह सूख चुका था... उसकी सूखी लकड़ियां पेड़ से एक एक करके गिरने लगी थी..अब लोगों को वो सूखा पेड़ नज़रों में चुभने लगा था और एक दिन सब ने मिलकर निश्चय किया कि इस पेड़ को काट कर यहाँ जगह खाली करते हैं ..फिर क्या था...पेड़ कटवाया गया लकड़ियां जलायी गयी और इस तरह पेड़ की जीवन लीला समाप्त हुई....
अब सभी उस पेड़ को भूल चुके हैं...अब शायद कोई और पेड़ अपनी जिम्मेदारियां निभा रहा है....
वो पेड़ अंतिम समय में किस परिस्थिति से गुजरा होगा ये शायद मेरे दादा जी को पता है..मैंने उनकी बातों में उस पेड़ के दर्द को महसूस किया है....
By अमित मिश्रा 'मौन'