Thursday, 27 December 2018

चाँद रात्रि का बड़ा बेटा है...

चाँद रात्रि का बड़ा बेटा है और ये सितारे उसके छोटे भाई बहन...

दिन का समय इनका खेलने और सीखने का समय होता है तो ये घर से बाहर निकल जाते हैं...

पृथ्वी इनके लिए खेल का मैदान है इसलिए ये पृथ्वी के चारों और चक्कर लगाते रहते हैं...

अमावस में ये सभी नानी के घर छुट्टियाँ मनाने चले जाते हैं फिर पूर्णिमा तक वापस आ जाते हैं....

आसमान इनका सरंक्षक है और इसलिए ये हमेशा उसकी छत्रछाया में ही रहते हैं....

और जैसा कि विश्वविदित है परमपिता परमात्मा इनका भी पिता है और ये सब कुछ पिता की देख रेख में ही होता है..

प्रेम...

बरसात में नदी का भर जाना प्रेम होना है...

फिर समंदर की तरफ तेजी से बढ़ना और उस तक पहुंचने का प्रयत्न करना प्रेम में पागल होना है...

रास्ते में मिलते बाँध, घाट और शहर प्रेम के मार्ग की बाधाएँ हैं...

फिर समंदर में ख़ुद को मिला देना प्रेम में समर्पण है...

समर्पण की प्रक्रिया में ख़ुद के वजूद की परवाह ना करना प्रेम की पराकाष्ठा है....

अनवरत और निरंतर चलती ये प्रक्रिया एक अमर प्रेम कहानी है....

'मौन'

Sunday, 9 December 2018

रात ठहरी है

रात  ठहरी  है  उस  पहर से
वो जब से गया इस शहर से

ना हुआ दीदार आख़िरी उसका
गिर गया हूँ अपनी ही  नज़र से
 
ना रही  मंज़िल की ख़्वाहिश
वापस लौटा मैं एक सफ़र से

प्यासा  ही  रहा  हूँ  बिन  उसके
अब तंग हूँ मैं साक़ी के ज़हर से

है अधूरी हर नज़्म बिन उसके
रहती हैं ग़ज़लें भी दूर बहर से

अमावस

देख  अमावस  डर  के  मारे
सोया चाँद और छुप गए तारे

छोड़ छाड़ के दाना तिनका
पंछी आ  गए  घर को  सारे

सूनी सड़कें चुप चौराहे
तन्हाई से  हम भी  हारे

वही है रातें  वही नज़ारे
बिना तुम्हारे दुश्मन सारे

सिकुड़ी चादर गीला तकिया
फिर  यादों  ने  पांव  पसारे

Thursday, 6 December 2018

नीम का पेड़

गाँव वाले घर के सामने जो जगह खाली पड़ी थी वहाँ धूप बहुत आती थी। दिन में उसका कोई उपयोग होता नही था पर शाम को अक्सर छोटे बच्चे वहां जरूर खेल लिया करते थे पर पता नहीं कैसे वहां एक नीम का पेड़ उग आया शायद किसी चिड़िया ने लाकर बीज फेंक दिया होगा..खैर दादी ने देखा तो सोचा चलो अब उग ही गया है तो बड़ा हो जाने दो और उन्होंने उसके इर्द गिर्द चंद ईंटें लगा दी ताकि कोई बच्चा खेलते खेलते उसे तोड़ न दे।

और जैसा कि अक्सर होता है पेड़ को बस जमीन चाहिए होती है और अगर वो मिल जाए तो वो अपने आप अपना पालन पोषण कर लेता है और इसी तरह वो पेड़ भी अपने आप बड़ा हो गया..हालाँकि जब तक वो बड़ा नही हुआ था तब तक किसी को उससे कोई उम्मीद नही थी पर जैसे ही वो बड़ा हुआ हर किसी को उसकी जरूरत आन पड़ी, किसी को सुबह उसकी दातून चाहिए थी किसी को उसकी पत्तियां ताकि पानी मे उबालकर बच्चों को नहला सकें (नीम की पत्तियों से नहलाने से कई रोग दूर होते हैं)।

वो पेड़ जैसे जैसे बड़ा हो रहा था उससे उम्मीदें भी बढ़ती जा रही थी और अब वो एक विशाल वृक्ष बन चुका था इतना बड़ा की कई लोग एक साथ बैठ कर उसकी छाँव तले समय बिता सकते थे।

फिर एक दिन सब ने मिलकर तय किया कि यहाँ एक चबूतरा बनाया जाए ताकि दिन में सभी लोग यहाँ बैठ सकें , फिर क्या था अगले दिन मजदूर बुला कर पेड़ के चारों तरफ से एक गोल सा चबूतरा बना दिया गया...वो पेड़ बड़ा खुश था कि लोग उसे कितना प्यार करने लगे हैं सब उसे कितना अपनापन देने लगे हैं आखिर हर रोज कुछ लोग आकर उस चबूतरे पर बैठ कर घंटों बातें किया करते थे और छोटे बच्चों के लिए तो वो खेल का मैदान बन गया था...

अब वो पेड़ भी अपनी पूरी कोशिश करता था अपनी छाया में आए सभी लोगों को पूरा आराम देने की...पर इसी कोशिश में वो ये भूल गया था कि चबूतरा बन जाने के कारण उसकी जड़ों को पानी नही मिल पा रहा था..और तो और वो जड़ें सूर्य की किरणों तथा वायु से भी वंचित हो रही थी जो की उसके विकास के लिए अति आवश्यक है।

अब उस पेड़ को भी तकलीफ होने लगी थी पर वो अपनी तकलीफ को नजरअंदाज करता हुआ पूरी कोशिश करता रहा कि वो उसकी छाँव का आनंद लेने वालों को संतुष्ट करता रहे...और जैसे कि अपेक्षित था कुछ दिनों बाद उसकी पत्तियां कम होने लगी, पत्तियों के झड़ने से छाँव कम होने लगी...फिर एक दिन उसने चबूतरे पर बैठने वालों को कहते सुना कि अब ये पेड़ बूढ़ा हो चला अब इसकी छाँव पहले जैसी नही रही...उन्हें शायद इस बात का अंदाज़ा नही था कि पेड़ के जल्दी बूढ़े होने का कारण वो स्वयं थे....पेड़ को बड़ा दुख हुआ पर वो कर भी क्या सकता था.. मन तो उसका भी था सबको खुश रखने का पर परिस्थितियाँ उसके वश में कहाँ थी...

समय बीतता गया.....अब लोगों ने उसके पास आना छोड़ दिया था वो पूरी तरह अकेला हो चुका था....आख़िरकार एक दिन ऐसा आया जब वो पूरी तरह सूख चुका था... उसकी सूखी लकड़ियां पेड़ से एक एक करके गिरने लगी थी..अब लोगों को वो सूखा पेड़ नज़रों में चुभने लगा था और एक दिन सब ने मिलकर निश्चय किया कि इस पेड़ को काट कर यहाँ जगह खाली करते हैं ..फिर क्या था...पेड़ कटवाया गया लकड़ियां जलायी गयी और इस तरह पेड़ की जीवन लीला समाप्त हुई....

अब सभी उस पेड़ को भूल चुके हैं...अब शायद कोई और पेड़ अपनी जिम्मेदारियां निभा रहा है....

वो पेड़ अंतिम समय में किस परिस्थिति से गुजरा होगा ये शायद मेरे दादा जी को पता है..मैंने उनकी बातों में उस पेड़ के दर्द को महसूस किया है....

By अमित मिश्रा 'मौन'

अधूरी कविता

इतना कुछ कह कर भी बहुत कुछ है जो बचा रह जाता है क्या है जिसको कहकर लगे बस यही था जो कहना था झगड़े करता हूँ पर शिकायतें बची रह जाती हैं और कवि...