जो वक़्त की बिसात पे
तू हौसले बिछाएगा
फ़लक नही है दूर फिर
सितारे तोड़ लाएगा
आँधियों के वेग में
अडिग खड़ा रहा अगर
रुख़ हवाओं का तू फिर
ख़ुद ही मोड़ पाएगा
कदम को कर कठोर तू
ख़ुद को जो जलाएगा
सदमें हर सफ़र के फिर
हँस के झेल जाएगा
निराश हो के रुक नही
हताश हो के थक नही
आशा की पतंग को
स्वयं ही तू उड़ाएगा
पर्वतों को तोड़ के
जो रास्ते बनाएगा
एक दिन ज़माना भी
पीछे पीछे आएगा
निगाह तेरी लक्ष्य पे
तू मुश्किलों से डर नही
कठिन डगर पे चल के ही
तू मंज़िलों को पाएगा
अमित 'मौन'
कठिन डगर पे चल के ही
ReplyDeleteतू मंज़िलों को पाएगा
प्रेरक और खूबसूरत रचना
हार्दिक धन्यवाद आपका🙏
Deleteआपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन सरदार हरि सिंह नलवा और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका🙏
Deleteसच है की कठीन रास्तों पर चलना होता है मंजिल इतना आसान नहीं होती .. ख्वाब जो ऊंचे होते हैं ...
ReplyDeleteबहतरीन रचना है ...
बहुत बहुत धन्यवाद आपका🙏
Deleteबेहतरीन रचना
ReplyDeleteधन्यवाद आपका
Deleteबेहतरीन रचना आदरणीय
ReplyDeleteसादर
हार्दिक धन्यवाद आपका
Deleteहार्दिक आभार आपका🙏
ReplyDeleteप्रेरणादायक रचना
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद आपका
Deleteप्रेरक भावों से सजी रचना अमित जी। हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई।
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद आपका
Deleteनिगाह तेरी लक्ष्य पे
ReplyDeleteतू मुश्किलों से डर नही
कठिन डगर पे चल के ही
तू मंज़िलों को पाएगा
बहुत खूब ,सादर
हार्दिक धन्यवाद आपका
Deleteउत्साहवर्धक कविता के लिए आभार.....शब्दों के अर्थ के साथ कविता की सुन्दरता बढ गई ....
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद आपका
Delete