Saturday 16 December 2017

तुम रूठ जाना मैं फिर मनाऊँगा, tum rooth jaana main phir manaunga

जितना मुंह मोड़ोगी उतना पीछे आऊंगा
तुम रुठ जाना मैं फिर मनाऊँगा

जितनी शिकायत करोगी मैं उतना सताऊंगा
तुम रूठ जाना मैं फिर मनाऊँगा

जितनी दूर जाओगी उतना पास आऊंगा
तुम रूठ जाना मैं फिर मनाऊँगा

कहीं भी छुप जाओ तुम्हे ढूंढ के लाऊंगा
तुम रूठ जाना मैं फिर मनाऊँगा

2 comments:

अधूरी कविता

इतना कुछ कह कर भी बहुत कुछ है जो बचा रह जाता है क्या है जिसको कहकर लगे बस यही था जो कहना था झगड़े करता हूँ पर शिकायतें बची रह जाती हैं और कवि...