ये हिज़्र की रात है लंबी चलेगी
टीस है दिल में बहुत ही खलेगी
जमाने से नज़रें मिलायें भी कैसे
मेरी इन आँखों में नमी सी रहेगी
चलेंगी हवायें तो पहले के जैसी
मगर इनमे उसकी महक ना रहेगी
चिराग़ों का क्या है ये जलते रहेंगे
मगर इस लौ में रौशनी ना रहेगी
चमन में सितारे भी बिखरे हुये हैं
मगर इनमे उसकी कमी सी रहेगी
अंधेरों में खुद को कैद तो कर लूँ
यादों की खिड़की खुली ही रहेगी
'मौन' हैं ग़ज़लें लफ्जों की कमी है
अब उसके बिना महफ़िल ना जमेगी
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