Friday, 16 March 2018

आशिक़ की नींद- ashiq ki neend

ना जगाओ नींद से उस आशिक़ को
आज कई दिनों बाद सोया लगता है

कुछ आँखों में  उसकी  नशा  भी है
मय में  खुद  को  डुबोया  लगता है

देखो  गीला है  तकिया भी  उसका
आज तो जी भर के  रोया लगता है

शायद कुछ दर्द कम हुआ है उसका
आज ही जख्मों को धोया लगता है

आज बेफिक्र है जैसे कुछ बाकी नही
इश्क़ में देखो सब कुछ खोया लगता है

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