कभी उत्साही और उद्दंड है,
कभी खुद पे ही घमंड है
कभी प्रखर कभी प्रचंड है,
सोच का न कोई मापदंड है
अगर जो ये कुरूप है,
फिर कार्य उसी अनुरूप है
मस्तिष्क का प्रतिरूप है,
तेरी सोच ही तेरा स्वरुप है
कभी प्रलाप कभी ये राग है,
तुझसे जुड़ी तेरा ही भाग है
खुद को जलाये वो आग है,
बुरी सोच आत्मा पे दाग है
इसके कई प्रकार है,
इसका रूप निराकार है
निकाल जो विकार है,
स्वच्छ सोच तेरा आधार है
जी हार्दिक आभार आपका🙏
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