माहताब की लाली को बादलों में छुपाया ना करो
यूँ बेवजह रूखसारों पे जुल्फें गिराया ना करो
यूँ बेवजह रूखसारों पे जुल्फें गिराया ना करो
बाहों के घेरों में सिमटो तो नज़रें झुका लो
रंग-ए-हया के चिलमन से बाहर आया ना करो
रंग-ए-हया के चिलमन से बाहर आया ना करो
गुफ़्तगू वस्ल की बेशकीमती खजाना है जानां
शब-ए-इश्क के किस्से सरेआम सुनाया ना करो
शब-ए-इश्क के किस्से सरेआम सुनाया ना करो
ग़ुरूर चाँदनी का भी अब हवा हो चला
यूँ हर बार सितारों को आईना दिखाया ना करो
यूँ हर बार सितारों को आईना दिखाया ना करो
नीयत महबूब की दगाबाज़ी पे उतर ना जाए
निगाहों के मयकदे में हर बार बुलाया ना करो
निगाहों के मयकदे में हर बार बुलाया ना करो
बोसों की बारीश से कुछ पल की राहत बख्शो
लबों से जकड़ हर बार 'मौन' बिठाया ना करो
लबों से जकड़ हर बार 'मौन' बिठाया ना करो
वाह वाह
ReplyDeleteएक एक शेर उम्दा है
नीयत महबूब की दगाबाज़ी पे उतर ना जाए
निगाहों के मयकदे में हर बार बुलाया ना करो
आपका मेरे ब्लॉग पर स्वागत है
बेहद शुक्रिया आपका
Deleteवाह बहुत खूबसूरत /उम्दा /बेहतरीन गजल।
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