मैं ख़ुश हूँ जो मैं आहिस्ता चल रहा हूँ
वो हैरां हैं फ़िर भी आगे निकल रहा हूँ
वक़्त लेता है करवट कई थमने से पहले
ये गुमां है मुझे मैं वक़्त बदल रहा हूँ
बनके पर्वत रहा मैं भी बरसों बरस यहीं
अब चली ये बयार ऐसी मैं भी पिघल रहा हूँ
भटका जो सफ़र में तो राहों से दिल लगा बैठा
कुछ ठोकरें थी ऐसी अब तक संभल रहा हूँ
वो दुबक गये सभी जो शेरों की खाल में आए
मैं चालाक भेड़िये सा जाके अब निकल रहा हूँ
'मौन' हो गए वो बस मौसम के तूफां निकले
मैं वो दरया जो अब तक मुसलसल रहा हूँ
No comments:
Post a Comment