चला था जहाँ से वहीं हूँ खड़ा
हैं कदम मेरे छोटे या रस्ता बड़ा
उठाया जिसे और सहारा दिया
उसी का था धक्का जो मैं गिर पड़ा
आइना हक़ीकत का आँखों में था
मैं दिल से गिरा और नज़र में चढ़ा
रक़ीबों की गिनती भी कम न हुई
फिर इतने बरस मैं हूँ किससे लड़ा
'मौन' जो टूटा तो रिश्ता भी छूटा
ना अब से है झुकना मैं जिद पे अड़ा
अच्छे शेर ...
ReplyDeleteजीवन के उलझाव सुलझाव से जूझते शेर ...