Friday, 30 November 2018

जिंदगी...

खुल के जियो तो मजा है ज़िंदगी
गिनो ग़म को तो  सजा है ज़िंदगी

वादों कसमों को भुला सको तो
संग हालातों के रजा है ज़िंदगी

दिन रात बदलते रिश्तों के संग
बिन यारों के बे मजा है ज़िंदगी

हर  पल नई  एक  सीख  है  देती
हर दिन लगे एक कज़ा है ज़िंदगी

आदम के सजदे 'मौन' करे क्यों
रब से दुआ  इल्तिज़ा है ज़िंदगी

No comments:

Post a Comment

अधूरी कविता

इतना कुछ कह कर भी बहुत कुछ है जो बचा रह जाता है क्या है जिसको कहकर लगे बस यही था जो कहना था झगड़े करता हूँ पर शिकायतें बची रह जाती हैं और कवि...