सहनशीलता की सीलन धीरे धीरे दिल की दीवारों को कमजोर बना देती है..
समझदारी का सीमेंट बार बार लगाने पर अविश्वास की एक मोटी परत बन जाती है..
अंततः आँखों का पानी सूख जाता है और प्रेम पपड़ी बन कर झड़ने लगता है..
अस्तित्व का आशियाना बचाए रखने के लिए जरूरी है की भावनाओं के भँवर में ना फँसें..
मोह के मायाजाल से परे मन में उमड़ते भावों को तरजीह दें और मस्तिष्क को मेहनत करने का मौका दें..
क्योंकि 'कुछ कठोर निर्णय जीवन को अत्यंत सरल बना देते हैं'
अमित 'मौन'
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