तिल काला गोरे गालों पे, उस पर होंठों की लाली
चले तो ऐसी कमर हिले, हो जैसे गुड़हल की डाली
नैन कटीले जिगर को चीरें, पास बुलाए है बाली
ज़ुल्फ़ उड़े तो हवा चले, आए बागों में हरियाली
झुकें जो पलकें दिन ढल जाए, हँसे तो फैले खुशहाली
पैजनिया की धुन पे नाचे, फ़िज़ा भी होके मतवाली
अधरों का आकर्षण है, ज्यों भरी हुई मधु की प्याली
रश्क करे चँदा भी जिससे, उस गुल का मैं हूँ माली
अमित 'मौन'
बहुत खूब .....
ReplyDeleteशुक्रिया आपका
Deleteहार्दिक आभार आपका
ReplyDeleteसुंदर रचना...
ReplyDeleteज़ुल्फ़ उड़े तो हवा चले, आए बागों में हरियाली
क्या कहने
शुक्रिया आपका
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