व्यर्थ बहाता क्यों है मानव
आँसू भी एक मोती है
जीवन पथ पर अग्निपरीक्षा
सबको देनी होती है
अवतारी भगवान या मानव
सब हैं इसका ग्रास बने
राजा हो या प्रजा कोई
सब परिस्थिति के दास बने
पहले लंका फ़िर एक वन में
सीता बैठी रोती है
जीवन पथ पर अग्निपरीक्षा
सबको देनी होती है
त्रेता, द्वापर या हो कलियुग
कोई ना बच पाया है
सदियों से ये अग्निपरीक्षा
मानव देता आया है
प्रेम सिखाती राधा की
कान्हा से दूरी होती है
जीवन पथ पर अग्निपरीक्षा
सबको देनी होती है
जीवन है अनमोल तेरा
पर क्षणभंगुण ये काया है
दर्द, ख़ुशी या नफ़रत, चाहत
जीवित देह की माया है
पत्नी होकर यशोधरा भी
दूर बुद्ध से होती है
जीवन पथ पर अग्निपरीक्षा
सबको देनी होती है
वाणी में गुणवत्ता हो बस
संयम से हर काम करो
कर्म ही केवल ईश्वर पूजा
जीवन उसके नाम करो
सुख, दुःख के अनमोल क्षणों में
आँखें नम भी होती है
जीवन पथ पर अग्निपरीक्षा
सबको देनी होती है
अमित 'मौन'
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (04-09-2019) को "दो घूँट हाला" (चर्चा अंक- 3448) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
हार्दिक आभार आपका
Deleteबहुत बहुत धन्यवाद आपका
ReplyDeleteसुंदर पंक्तियाँ
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद आपका
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