Sunday, 1 September 2019

अग्निपरीक्षा

व्यर्थ बहाता क्यों है मानव
आँसू  भी  एक  मोती  है
जीवन पथ पर अग्निपरीक्षा
सबको  देनी  होती  है

अवतारी भगवान या मानव
सब  हैं   इसका  ग्रास  बने
राजा  हो  या  प्रजा  कोई
सब परिस्थिति के दास बने

पहले लंका फ़िर एक वन में
सीता   बैठी   रोती   है
जीवन पथ पर अग्निपरीक्षा
सबको  देनी  होती   है

त्रेता, द्वापर या हो कलियुग
कोई  ना  बच  पाया  है
सदियों से ये अग्निपरीक्षा
मानव  देता  आया  है

प्रेम सिखाती राधा की
कान्हा से दूरी होती है
जीवन पथ पर अग्निपरीक्षा
सबको  देनी  होती  है

जीवन  है  अनमोल  तेरा
पर क्षणभंगुण ये काया है
दर्द, ख़ुशी या नफ़रत, चाहत
जीवित  देह  की  माया  है
 
पत्नी होकर यशोधरा भी
दूर  बुद्ध  से  होती  है
जीवन पथ पर अग्निपरीक्षा
सबको  देनी  होती  है

वाणी में गुणवत्ता हो बस
संयम से हर काम करो
कर्म ही केवल ईश्वर पूजा
जीवन उसके नाम करो

सुख, दुःख के अनमोल क्षणों में
आँखें  नम  भी  होती  है
जीवन पथ पर अग्निपरीक्षा
सबको  देनी  होती  है

अमित 'मौन'

5 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (04-09-2019) को "दो घूँट हाला" (चर्चा अंक- 3448) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. बहुत बहुत धन्यवाद आपका

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  3. सुंदर पंक्तियाँ

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    Replies
    1. हार्दिक धन्यवाद आपका

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